उनके जैसे क्रिकेटर अब पैदा नहीं होते. ऐसे खिलाड़ी जो मैदान पर एंटरटेन करें और ये भी याद रखें कि इसके परे भी उनकी एक ज़िंदगी है. अब युवराज सिंह जैसे खिलाड़ी नहीं होते जो बल्ले के उम्दा प्रहार और कैंसर को मात देकर अन गिनत दिलों को जीत लें. उनके जैसे ज़िंदादिल लोग अब नहीं होते जो तमाम ख़ूबियों से लैस और अनमोल हों. भरोसेमंद हों और जादूगरी दिखा सकते हों. उनमें कैच पकड़कर मैच जिताने की ख़ूबी थी. मुझे आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफ़ी का कोलंबो में हुआ वो मैच याद आता है जहां उन्होंने दक्षिण अफ्ऱीका के ख़िलाफ़ तीन शिकार किए थे. प्रभावी लेफ़्ट आर्म स्पिन गेंदबाज़ी उनके क्रिकेट को समृद्ध करती थी. ये तमाम ख़ूबियां उन्हें एक ऐसी टीम का सबसे क़ीमती खिलाड़ी बना देती थीं जिसमें कई बड़े नाम थे. उन दिनों जब वो सीमित ओवरों के खेल में शीर्ष पर दिखते थे, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और महेंद्र सिंह धोनी जैसे उनके कप्तान इन्हीं ख़ूबियों पर निसार थे. धोनी के साथ उनके तल्ख़ रिश्तों के क़िस्से सामने आए हैं. ये या द रखा जाना चाहिए कि इसकी शुरुआत ख़ुद उनके पिता योगराज सिंह की ओर से उस वक़्त हुई जब युवरा...